काईल वाइट
नातेदारी के रूप में समय
अनुवाद: राजेंद्र सिंह नेगी
कैंब्रिज कम्पेनियन टू एन्वायरॉनमेंटल ह्यूमनेटिस में जेफ़री कोहेन (एरिज़ोना स्टेट यूनिवर्सिटी) और स्टेफ़नी फूट (वेस्ट वर्जीनिया यूनिवर्सिटी) द्वारा संपादित 2021 में प्रकाशनार्थ:
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस.
भूमिका
दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन समुदायों और लोगों के लिए संकट की स्थिति पैदा करता है। अन्य परिवर्तनों के साथ-साथ, चरम मौसम की घटनाएं, पौधों और जानवरों के आवासों में महत्वपूर्ण परिवर्तन, और समुद्र स्तर में गंभीर वृद्धि तीव्र होती जा रही है। आर्थिक लागतों, सामाजिक ख़लल और सांस्कृतिक निरंतरता को लेकर जलवायु परिवर्तन के कारण निरंतर बढ़ते ख़तरों के प्रति मूल निवासी (इंडीजिनस पीपुल्स) बेहद मुखर रहे हैं। बतौर शोधकर्ता, नातेदार और आयोजक इस निबंध को मैंने अपने नज़रिए के आधार पर विकसित किया है, विशेष रूप से, कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निबटने और उनके प्रभावों को मूल निवासी कैसे कम करने की तैयारी कर सकते हैं। मेरी मंशा है कि पाठक समय और जलवायु परिवर्तन के बारे में अपनी बनी बनाई धारणाओं के बारे में पुनर्विचार करें।
इस बात को लेकर की चिंता बढ़ती जा रही है कि रिन्यूएबल (अक्षय) ऊर्जा समाधान अपने आप में हानिकारक साबित हो सकते हैं, भले ही जलवायु परिवर्तन से निबटने का उद्देश्य कार्बन-रहित ऊर्जा प्राप्त करना हो। मूल निवासी उन समुदायों, देशों और लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने अपने हालिया अनुभवों के आधार पर इसको लेकर अपना सरोकार जताया है। सरकारें और कोर्पोरेशंस मुनाफ़ा कमाने की अपनी होड़ में पवन, सौर, पनबिजली, या जैविक ईंधन ऊर्जा से जुड़ी तकनीकी को इस तरह से लागू करते हैं, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक, लोगों के स्वास्थ्य और सांस्कृतिक अखंडता के लिए ख़तरा उत्पन्न कर सकती है। रिन्यूएबल ऊर्जा के पैरोकरों की नकारात्मक रूप से प्रभावित होने वाले समुदायों, देशों और लोगों की सुरक्षा, भलाई और आत्मनिर्णय के प्रति जिम्मेदारियां हैं।
कुछ रिन्यूएबल ऊर्जा समाधानों को गैर-जिम्मेदाराना तरीके से क्यों लागू किए जाता है? मेरी राय में इसका कारण कुछ पैरोकारों द्वारा इन समाधानों का ‘समय’ को लेकर धारणाओं के माध्यम से जलवायु परिवर्तन का वर्णन किया जाना है। जैसा कि मैं इसका और अधिक विस्तार से वर्णन करना चाहूँगा, मेरी राय में जब लोग ‘लीनियर’ (रेखाकार) समय के ज़रिए जलवायु परिवर्तन से वाबस्ता होते हैं, यानी एक टिकटिक करती घड़ी के रूप में, तो उन्हें ख़तरा महसूस होने लगता है, और वे जलवायु परिवर्तन के सबसे प्रतिकूल प्रभावों को आनन-फ़ानन में तुरंत रोकने के उपायों की तलाश में जुट जाते हैं। इसके बावजूद उनकी यह त्वरित कार्रवाई दूसरों के प्रति उनकी जिम्मेदारियों पर पर्दा डालती है। नतीजतन, उनके लिए किया जाने वाला समाधान ही नुकसान का सबब बन जाता है।
जलवायु परिवर्तन को बताने का लीनियर समय एकमात्र तरीका नहीं है। मूल निवासियों ने नातेदारी (किनशिप संबंधों) में परिवर्तन के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त किया है। किनशिप समय, लीनियर समय के विपरीत, यह दर्शाता है कि आज के जलवायु परिवर्तन के ख़तरे पहले से ही लोगों द्वारा परस्पर सुरक्षा, भलाई और आत्मनिर्णय की जिम्मेदारी ना लेने के कारण हैं। जलवायु परिवर्तन के किसी भी समाधान को ऐसी परिस्थितियों में लागू किया जाएगा, जहाँ पहले से ही गैर-जिम्मेदाराना वातावरण का बोलबाला हो। साझा जिम्मेदारी की नैतिकता के रूप में किनशिप इस बात पर अपना ध्यान केंद्रित करती है कि मूल निवासियों की सुरक्षा, कल्याण और आत्मनिर्णय का सम्मान करने वाली अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को संभव बनाने हेतु पहले जिम्मेदार संबंधों को कैसे स्थापित या बहाल किया जाना चाहिए।
समय और जलवायु परिवर्तन
जलवायु प्रणाली किसी ऐसे अमूर्त चित्रण का हवाला देती है कि दीर्घकालिक मौसम का मिजाज कैसे बदलता है। जलवायु प्रणाली का अध्ययन मौसम के मिजाज के इतिहास और भविष्य के मौसम का पूर्वानुमान लगाने के लिए सबसे उत्तम अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। ऐसे कई कारक हैं जो मौसम के मिजाज में बदलाव का संकेत देते हैं, या, इसका कारण बनते हैं, जिनमें अन्य कारकों के अलावा, मौसमों का औसत तापमान, शहरीकरण और कृषि पद्धतियाँ, ग्रीनहाउस गैसों की वायुमंडलीय सघनता, वनों की कटाई और पुनर्जनन दर और समुद्री धाराओं का संचलन शामिल है। जलवायु परिवर्तन केवल एक लेबल है, जो विभिन्न संकेतों और कारणों का उपयोग करके मौसम के मिजाज में रुझानों को दर्शाता है। जलवायु परिवर्तन बदलावों, फेरबदल, संक्रमण, प्रवृत्तियों और मिजाज के बारे में है। इस तरह जलवायु परिवर्तन समय के साथ सामने आने वाली घटनाओं के बारे में है। जलवायु परिवर्तन के बारे में बात करना समय बताने की कवायद है। यह स्पष्ट करने के लिए कि समय और जलवायु परिवर्तन कैसे आपस में जुड़े हुए हैं, जलवायु परिवर्तन को लेकर नीचे दिए गए दो विचारों पर ग़ौर करें, जो अलग-अलग स्रोतों से आते हैं। जलवायु परिवर्तन का प्रत्येक विवरण समय बताने की क़वायद है।
पहला विवरण:
अपने सीमित अथवा संकीर्ण अर्थ में जलवायु को आमतौर पर औसत मौसम के रूप में परिभाषित किया जाता है, या, महीनों से लेकर हजारों या लाखों वर्षों तक की अवधि के दौरान प्रासंगिक मात्राओं के औसत और अस्थिरता के संदर्भ में सांख्यिकीय विवरण के रूप में। विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा परिभाषित परिवर्तनीय के औसत की पारंपरिक अवधि 30 वर्ष है। प्रासंगिक मात्राएं अक्सर सतही अस्थिरता जैसे तापमान, वर्षा और वायु होती हैं। एक व्यापक अर्थ में जलवायु, जलवायु प्रणाली की, सांख्यिकीय विवरण सहित, अवस्था है। जलवायु परिवर्तन, जलवायु की अवस्था में पहचाने जा सकने वाला परिवर्तन है (मिसाल के तौर पर, सांख्यिकीय परीक्षणों का उपयोग करके), इसके गुणों के औसत और/या अस्थिरता में बदलाव द्वारा, और, जो एक विस्तारित अवधि के लिए क़ायम रहती है। आमतौर पर, दशकों या उससे अधिक समय तक। जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आंतरिक प्रक्रियाओं या बाहरी दबावों, या, वातावरण की संरचना, या, भूमि उपयोग में लगातार मानवजनित परिवर्तनों के कारण हो सकता है। इस बात के प्रमाण मौजूद हैं कि मानवजनित प्रभावों के परिणामस्वरूप कुछ चरम सीमाएँ बदल गई हैं, जिनमें ग्रीनहाउस गैसों की वायुमंडलीय सांद्रता में वृद्धि भी शामिल है। इस बात की संभावना बहुत अधिक है कि मानवजनित प्रभावों ने वैश्विक स्तर पर अत्यधिक दैनिक न्यूनतम और अधिकतम तापमान को पहले से ज़्यादा गर्म कर दिया है। इस बात की भी संभावना है कि मानवजनित प्रभावों ने वैश्विक स्तर पर अत्यधिक वर्षा को तेज करने में योगदान दिया है। साथ ही यह संभावना भी है कि अत्यधिक तटीय जल वृद्धि का कारण मानवजनित प्रभाव रहा हो [इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के अनुसार]।
दूसरा विवरण:
अनिशिनाबेग क़बीले के लिए, मिशिपिज़ू [पानी में रहने वाला मिथकीय तेंदुआ] हमेशा पानी का संरक्षक और जल आत्माओं, भूमि एवं आकाश में विचरण करने वाले प्राणियों के बीच संतुलन का रक्षक रहा है। लंबी अवधि तक चलने वाले जलवायु चक्रों में इन मानवजनित परिवर्तनों को देखते हुए आज उसकी क्या भूमिका है? जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन और मौसम का मिजाज बाधित होता है, कुछ क्षेत्रों में ज़्यादा और कुछ में कम मजबूत तूफ़ानी जीव होंगे। वे वर्ष के अलग-अलग समय पर आएंगे और मौसमी चक्रों में व्यवधान (अवरोध) उत्पन्न करेंगे। यह पहले से ही हो रहा है, और जंगली-चावल एकत्रित करने वालों को पता लग रहा है कि उनकी झीलों में पानी भर गया है और कुछ क्षेत्रों में धान खराब हो गए हैं। उनकी झीलें सूख चुकी हैं, और कुछ जगहों पर धान उग नहीं रहा है। शिकारियों को पता लग रहा है कि दक्षिण में गर्मी के कारण मूस (एक प्रकार का हिरण), भालू और अन्य पशु, सुदूर उत्तर की ओर पलायन कर रहे हैं। अन्य पशु और पक्षी, जो परंपरागत रूप से ओजिब्वे के लिए अज्ञात हैं, गर्म दक्षिण से पलायन कर रहे हैं। बढ़े हुए तापमान का मतलब है हिरण और मूस जैसे कुछ पशुओं के लिए कीड़े और बीमारियाँ बढ़ी हैं। आकाश का तापमान बढ़ने की वजह से भूमि और जल जीवों के व्यवहार, आवास और स्वास्थ्य में परिवर्तन देखने को मिल रहा है। पारंपरिक रूप से प्राकृतिक संसाधनों, विशेष रूप से मछली और पानी और उसके आसपास रहने वाले अन्य जीवों की सुख-सुविधा को मिशिपिज़ू नियंत्रित करता आया है। ओजिब्वे हाइड्रोमाइथोलॉजी में, मिशिपिज़ू हमेशा तूफ़ानी जीवों का दुश्मन रहा है। जिसे हम जलवायु परिवर्तन कहते हैं के कारण आज उनकी संख्या में वृद्धि हो रही है [मेलिसा नेल्सन]।
जलवायु परिवर्तन का पहला विवरण उन लेखकों के समूह से लिया गया है, जो जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी के सदस्य हैं। यह समय की लीनियर इकाइयों के अनुसार जलवायु परिवर्तन पर निगाह रखती है। लीनियर समय का अर्थ है समान अवधि के माध्यम से अवधि, फैलाव या गति का वर्षों या सदियों जैसी इकाइयों में वर्णन। इसमें एक रिपोर्ट के संदर्भ में वर्णन होता है, जिसमें नीति निर्माताओं सहित लोगों को मानव आबादी को जलवायु परिवर्तन के संभावित ख़तरों के बारे में अवगत किया जाता है। यह आशा की जाती है कि रिपोर्ट में ख़तरों के बारे में जानकारी लोगों को यह महसूस करने में मदद करेगी कि जलवायु परिवर्तन के सुरक्षित अनुकूलन और इसके खतरनाक प्रभावों को कम करने के उपाय के प्रति उनकी भी ज़िम्मेदारी बनती है।
दूसरा विवरण मेलिसा नेल्सन का है, जो अनिशिनाबे समुदाय की बौद्धिक और वैज्ञानिक परंपराओं के आधार पर जलवायु परिवर्तन पर चर्चा कर रही हैं। ज़ाहिर तौर पर, नेल्सन के विवरण में लीनियर समय की इकाइयाँ नदारद हैं। इसकी बजाय, इनके विवरण में संबंधों में बदलावों के अनुसार होने वाले बदलावों पर नज़र रखी गई है। मैं शीघ्र ही नेल्सन के विवरण पर लौटूंगा। हालांकि, शुरुआत में सबसे पहले मैं यह बताने का प्रयास करूँगा कि नातेदारी या संबंधों से मेरा आशय क्या नहीं है। नातेदारी से मेरा मतलब केवल छोटे परिवारों या जैविक वंश समूहों के सदस्यों द्वारा साझा किए गए संबंधों से नहीं है।
इसके बजाय, मेरे लिए नातेदारी का मतलब कुछ अलग है। नातेदारी से तात्पर्य उन संबंधों की श्रेणी से है, जो लोगों के एक-दूसरे के साथ होते हैं। ख़ासकर, नातेदारी जिम्मेदारी के आधार पर रिश्तों की श्रेणी में आते हैं। उत्तरदायित्व पारस्परिक देखरेख और पारस्परिक संरक्षकता के बंधन की तरफ़ इशारा करता है। जब एक समाज के सदस्य एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदारियों को व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल में लाते हैं, तो उच्च स्तरीय परस्पर निर्भरता सामने आती है। इस तरह की परस्पर निर्भरता उन परिवर्तनों के प्रति समाज की अनुक्रियता को सुगम बनाने के मक़सद को पूरा करती है, जो उसके सदस्यों की सुरक्षा, कल्याण और आत्मनिर्णय को प्रभावित करते हैं। चाहे तूफान, महामारी, या व्यापार प्रतिबंध की स्थिति हो, साझा जिम्मेदारियों के रूप में उच्च स्तरीय परस्पर निर्भरता मुक़ाबला करने की एक महत्वपूर्ण रणनीति बन सकती है।
अब नेल्सन के पास वापिस चलते हैं। नेल्सन का कथन कई जिम्मेदारियों के संदर्भ में नातेदारी पर चर्चा करता है, जिसमें पर्यावरण के लिए मिशिपिज़ू; और, विविध पौधों एवं पशुओं के लिए मनुष्य शामिल हैं। मिशिपिज़ू एक “अभिभावक” तथा “संतुलन का रक्षक” है और दूसरों की “भलाई” के प्रति जिम्मेदार है। नेल्सन का विवरण बताता है कि विभिन्न पारिस्थितिक तनाव की स्थिति में, जैसे कि मिशीपिज़ू और थंडरर्स के बीच पारस्परिक जिम्मेदारी के माध्यम से परस्पर निर्भरता क्यों मायने रखती है। जलवायु प्रणाली में मानव का हस्तक्षेप जिम्मेदारियों और तनावों के बीच अंतःक्रिया को बाधित कर रहा है। जैसा कि नेल्सन बताती हैं, परिवर्तन पूरे परिदृश्य में अचानक और बढ़ी हुई दर पर प्रकट होते हैं।
दोनों विवरण अलग-अलग अवधारणाओं को तलब करते हैं कि कैसे जलवायु परिवर्तन की अवधि और फैलाव का वर्णन किया जाए, यानी वह समय जिसमें जलवायु परिवर्तन प्रकट होता है। पहले विवरण में, समय एकसार लीनियर इकाइयों के ज़रिए प्रकट होता है; और, दूसरे विवरण में, नातेदारी संबंधों में बदलाव के माध्यम के ज़रिए। समय की इन अवधारणाओं की तुलना करते हुए, मैं शेष निबंध को जलवायु परिवर्तन को कम करने की जिम्मेदारी को समझने हेतु सबक की पहचान करने के लिए समर्पित करता हूँ।
टिकटिक करती घड़ी के रूप में जलवायु परिवर्तन
लीनियर समय जलवायु प्रणाली में आने वाले रुझानों को वर्णित करने का एक विशिष्ट तरीका है। कुछ जलवायु परिवर्तन प्रवृत्तियों, जिन्हें लीनियर समय में चित्रित किया गया है, निम्नलिखित प्रवृत्तियां शामिल हैं: सदियों के अंतराल के दौरान बढ़ने वाले वैश्विक औसत तापमान के वार्षिक माप; 1700 के अंत और 1800 की शुरुआत में आंकड़े दिखाते हैं कि औद्योगिक क्रांति के बाद ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में कैसे वृद्धि हुई है।
चित्र 1: यूएस ग्लोबल चेंज रिसर्च प्रोग्राम 2018
ग्राफ़ पर बनी पट्टियाँ डिग्री की उस संख्या दर्शाती हैं, जो प्रत्येक वर्ष के लिए औसत वैश्विक तापमान पिछली शताब्दी (1901-2000) के औसत वैश्विक तापमान से भिन्न होता है।
https://www.globalchange.gov/browse/indicators/global-surface-temperatures
लीनियर समय में डाली गई जलवायु प्रवृत्तियों के आंकड़े जैसे चित्र 1 अब हर जगह हैं। इस तरह के अधिकांश आंकड़ों का उद्देश्य वैज्ञानिक रूप से विश्वसनीय जानकारी मुहैय्या करवाना है। सूचनादाता चाहते हैं कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्रवाई करने की उनकी जिम्मेदारी के परिमाण पर विचार करने हेतु लोगों के पास एक सुघढ़ आधार हो। चूँकि प्रवृतियाँ हर जगह जीवन के लिए — समुद्र स्तर में वृद्धि के कारण आर्थिक रूप से महंगे बुनियादी ढांचे के नुकसान से लेकर, पानी का तापमान बढ़ने से मछलियों की प्रजाति में गिरावट, जानवरों, इंसानों और पौधों में वैक्टर के विस्तार तक — हानिकारक और घातक परिणाम हैं।
समय के लीनियर उपायों में संकट और तात्कालिकता की भावना उत्पन्न करने की क्षमता होती है। मेरा मतलब है कि शतरंज जैसे खेल को टाइमर के साथ या उसके बिना खेलने के बीच के अंतर के समान है। हालांकि, यहां किसी भी असंगत तत्वों को क्षमा करें जो शातिर शतरंज खिलाड़ी आसानी से इंगित कर देंगे। जब एक स्टॉप वॉच मुझे अपनी शतरंज की चाल चलने के लिए मजबूर करती है, तो मैं अपना ध्यान एकाग्रचित करने लगता हूँ और बिना समय गँवाए आज़माई रणनीतियों या चालों पर वापिस लौट आता हूँ, अपने आप से यह पूछे बिना कि मैं उस नतीजे पर कैसे पहुँचा या कि क्या वह सबसे अच्छी चाल है। उस समय मैं अपने अंदर तनाव अनुभव करता हूँ(अर्थात ख़तरा)। अगर मुझे शतरंज के खेल में अनुभव की कमी है, तो स्पीड शतरंज जैसा समय की पाबंदी वाला खेल बेहद चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। जबकि एक बिना समय की पाबंदी वाला खेल अलग होता है। टिकटिक करती घड़ी की अनुपस्थिति पर विचार करने के लिए विकल्पों की एक विस्तृत श्रृंखला खुलती है और प्रस्तुत रणनीतियों पर सवाल उठाने का मौका मिलता है। अगर मैं अपनी कल्पना का और अधिक उपयोग करता हूँ तो मैं एक शतरंज के खेल की कल्पना कर सकता हूँ जहाँ मैं व्यापक रूप से दूसरों से परामर्श कर सकता हूँ, अपने दीर्घकालिक स्वास्थ्य को गंभीरता से ले सकता हूँ, और अपने परिवार और समाज के प्रति देखरेख करने वाले कर्तव्यों के साथ, खेल के बोझ को संतुलित कर सकता हूँ।
इस उपमा को ध्यान में रखते हुए, ‘लीनयरिटी’ के कुछ उदाहरणों पर विचार करें। आईपीसीसी की 1.5 डिग्री रिपोर्ट मानव समाजों को वैश्विक औसत तापमान में 2 डिग्री की वृद्धि होने से बचने हेतु अपने कार्बन फ़ुटप्रिंट को कम करने के लिए दो दशक का समय देती है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि 1.5 डिग्री की वृद्धि को बनाए रखने के लिए अक्षय ऊर्जा की आपूर्ति “2050 में 70-80% बिजली” की आवश्यकता होगी। इस तरह का ऊर्जा संक्रमण लगभग 30 वर्षों के कम समय के भीतर हासिल करना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा।
क्योटो प्रोटोकॉल अपनी “प्रतिबद्धता अवधि” के लिए जाना जाता है, जैसे कि 2008 में शुरू और 2012 में समाप्त होने वाला पहला चरण। इसी तरह पेरिस समझौते में भी देशों के लिए अपनी राष्ट्रीय योजनाओं में उत्सर्जन में कमी लाने और इसकी जानकारी अन्य देशों को देने के लिए विभिन्न समय सीमाएं दी गई हैं। इन समय सीमा को पूरा करने के लिए देशों की क्षमताओं के बारे में कुछ लोगों में विश्वास की कमी को देखते हुए, सौर विकिरण प्रबंधन जैसी भू–अभियांत्रिकी प्रौद्योगिकियों (जियो इंजीनियरिंग) पर शोध किया जा रहा है, क्योंकि उनके साथ संभावित ख़तरे जुड़े हुए हैं।
उपरोक्त उदाहरणों में, लीनियर, अनुक्रमिक समय तेज़ी से पीछे छूटते वक़्त के भाव को उत्पन्न करता है। वर्षों और दशकों के बीतने से, अधिक गहन सूखे और बारिश की घटनाओं, समुद्र स्तर में वृद्धि, और अन्य परिवर्तनों के साथ, रोग वैक्टर के विस्तार का खतरा बना रहता है। और इन परिवर्तनों का पलट जवाब देने और प्रमुख कारणों में से एक को कम करने हेतु, मनुष्यों के लिए समय समाप्त होता जा रहा है: वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती सांद्रता में मानव योगदान, चाहे कोयले जैसे ऊर्जा स्रोतों, या औद्योगिक भूमि उपयोग, या गहन कृषि. समय बहुत तेज़ी से बीत रहा है। यहाँ से मनुष्य कैसे क़दम उठाता है यह इस बात पर निर्भर करता है कि समय तेज़ी से या धीमे बीतता प्रतीत होगा, या, हमारे पास ज़्यादा कि कम समय बचा है।
टिकटिक करती जलवायु घड़ी एक तरीका है, जो समय की अवधारणा प्रभावित करती है कि कैसे कुछ लोग जलवायु परिवर्तन का अनुभव करते हैं। लीनियर, इकाई–विभाज्य वर्णन एक भावना को व्यक्त करता है कि जलवायु परिवर्तन के समाधान के लिए त्वरित कार्रवाई और अनुशासित प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। मेरे लिए कम से कम, जो खतरे के रूप में प्रतीत होता है, वह कुछ ऐसी देय स्थिति है जिसे जलवायु परिवर्तन से खतरा है। चूंकि समय तेज़ी से बीतता जा रहा है और प्रतिक्रिया के लिए बहुत कम समय बचा है, इसलिए देय स्थिति को व्यवधान से बचाने के लिए प्रस्तुत रणनीतियों को आज़माया जाता है।
ऐसी कई रणनीतियाँ हैं। आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्तियों को अपने वर्तमान उपभोक्ता खर्च पर जल्द से जल्द लगाम लगाकर, अपने ख़र्चों को अक्षय उत्पादों और ऊर्जा में लगाना चाहिए। निगमों और सरकारों को नवीकरणीय ऊर्जा की लागत को कम करना चाहिए, ताकि उपभोक्ताओं, संगठनों और सरकारों के लिए किफायती बाजार तैयार हों। उच्च औद्योगिक फ़ुटप्रिंट वाले देशों की सरकारों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं को तुरंत धीमा करना होगा जिससे स्वच्छ ऊर्जा या वन संरक्षण जैसे उपायों के लिए तत्काल निवेश के अवसर पैदा हों। वैश्विक विकासशील देशों और मूल निवासियों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं को ऊर्जा के गंदे स्रोतों वाले उद्योगों, अस्थिर उपभोक्ता आदतों और पर्यावरण–विनाशकारी भूमि–उपयोग के ज़रिए विकसित करने के आग्रह से बचना चाहिए।
अनुशासित प्रतिबद्धताएं, हालांकि, शुरू में सख्त होने के बावजूद समय के चक्र में नई अर्थव्यवस्थाओं को कार्बन के बेहतर इस्तेमाल या इसका बहुत कम इस्तेमाल कर, सभी के लिए बेहतर जीवन स्तर बनाने की दिशा में संक्रमण की ओर ले जाने वालीं थीं। लेकिन, अंततः त्वरित कार्रवाइयाँ प्रमुख राष्ट्रों और निगमों द्वारा आज़माई गई रणनीतियों पर निर्भर होनी चाहिए। जलवायु परिवर्तन शमन के कुछ जाने–माने समाधान, वर्तमान स्थिति को कम से कम बाधित करते हुए कार्बन फ़ुटप्रिंट को तुरंत कम करने के तरीके खोजने का प्रयास में कर रहे हैं।
मिसाल के तौर पर, स्वच्छ विकास तंत्र (क्लीन डेवेलमेंट मेकनिस्म) ऐसे बाजार बनाने का प्रयास करता है, जहाँ विकासशील देश औद्योगिक देशों को अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं से क्रेडिट का व्यापार और बिक्री कर सकें। सनद रहे कि क्योटो प्रोटोकॉल के तहत विकसित देशों के अपने कार्बन फुटप्रिंट में कमी के कुछ स्तरों को पूरा करने के दायित्व थे। इस तरह के बाजार की जरूरत इसलिए समझी जाती है क्योंकि कुछ औद्योगिक देश अपनी मौजूदा गैर–नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों से हटने को तैयार नहीं हैं। अनुशासित प्रतिबद्धता के माध्यम से त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए बाजार की रणनीतियों जैसी स्वीकृत रणनीतियों में गिरावट आई है। लेकिन ऊर्जा परिवर्तन के संदर्भ में तीव्र, अनुशासित प्रतिबद्धता से हमें क्या मिलता है, जो खतरनाक जलवायु परिवर्तन को कम करेगा? यह हम अभी तक निश्चित रूप से नहीं जानते हैं। लेकिन लगातार सामने आने वाला साहित्य कई मूल निवासियों सहित बहुत से अन्य समुदायों के खिलाफ पर्यावरणीय अन्याय की तरफ़ इंगित करता है। वास्तव में, आम स्वीकृत रणनीति यह है कि सरकारों और निगमों का मानना है कि वे मूल निवासियों के साथ वास्तविक लाभ साझा करने और सहमति के बिना त्वरित कार्रवाई कर सकते हैं। मैक्सिकन राज्य वाहाका में तेवांतेपेक के इस्तमुस में पवन ऊर्जा के लिए मूल निवासियों के प्रतिरोध के आसपास कुछ छात्रवृत्ति पर विचार करें।
1990 के दशक से, मैक्सिकन सरकार और प्रमुख बहु–राष्ट्रीय कॉर्पोरेट निवेशकों द्वारा पवन ऊर्जा विकास के लिए तेवांतेपेक के इस्तमुस को लक्षित किया गया है। इसाबेल अल्तामिरानो–जिमेनेज़ ने दर्ज किया कि कैसे जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिए तात्कालिकता की अवधारणा का उपयोग निजी उद्योग के पैरकारों द्वारा वित्तीय निवेश और गहन भूमि उपयोग को सही ठहराने के लिए किया गया। इस क्षेत्र में अब सैकड़ों टर्बाइन हैं, और इनके विस्तार की भी योजना है। उपलब्ध शोध में, निजी उद्योगों को लाभ पहुंचाने के लिए कई योजनाएं तैयार की गई हैं, जिनमें से कुछ में प्रदूषण और उच्च कार्बन फ़ुटप्रिंट का इतिहास है। पवन ऊर्जा विकास, स्वच्छ विकास तंत्र से जुड़ी है।
अल्तामिरानो–जिमेनेज़ का व्यापक अध्ययन स्पेनिश और मैक्सिकन उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ सदियों से ज़ापोटेक लोगों के प्रतिरोध के इतिहास का वर्णन करता है, जिसमें उनके स्वयं के कानूनी आदेशों, सांस्कृतिक पहचान और पट्टेदारी प्रणालियों की रक्षा करने के प्रयास भी शामिल हैं। ऐतिहासिक और वर्तमान उपनिवेशवाद ने मैक्सिकन सरकार, विकास बैंकों और बहु–राष्ट्रीय निगमों द्वारा प्रस्तावित परियोजनाओं के संबंध में ज़ापोटेक लोगों की स्वायत्तता को ज़बर्दस्त चुनौती दी है। पवन ऊर्जा का विकास ऐसी स्थिति में होता है, जहाँ सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक उत्पीड़न, पीढ़ियों तक बना रहता है और ऐसी बाधाएँ उत्पन्न करता है जिनके चलते उन परियोजनाओं को पारित करने, जिनसे समुदायों को पहले ही ख़ास फ़ायदा नहीं होता, में मूल निवासियों की कोई रज़ामंदी नहीं होती, जबकि उनकी पट्टेदारी, स्वास्थ्य, आर्थिक व्यावहारिकता और सांस्कृतिक अखंडता सबसे अधिक प्रभावित होती है। अल्तामिरानो–जिमेनेज़ लिखते हैं कि “मूल किसान ख़ुद पवन ऊर्जा का विरोध नहीं करते हैं; बल्कि, वे लाभों का हिस्सा होने के साथ–साथ सामूहिक रूप से परामर्श करने की मांग करते हैं।”
हाल ही में, साइमन हाओ और डोमिनिक बोयर ने इस्तमुस पर मरीना रेनोवेबल्स पवन ऊर्जा परियोजना पर अपना काम प्रकाशित किया है। लीनियर समय में गढ़ा, इस परियोजना का उद्देश्य 879,000 टन ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकना है, जो लैटिन अमेरिका में सबसे बड़ी पवन विकास परियोजना है। हाओ का काम कार्बन फ़ुटप्रिंट को तेजी से कम करने के लिए परियोजना के लीनियर लक्ष्यों का वर्णन करता है।
अल्तामिरानो–जिमेनेज़ के विश्लेषण के अनुरूप, हाओ के काम में चर्चा की गई है कि कैसे इलाक़े के मूल निवासियों के कुछ सदस्यों ने अपनी भूमि के अपवित्रीकरण के बारे में अपनी चिंताओं को प्रकट करते हुए इस विशिष्ट विकास का विरोध किया और कि कैसे उन्हें विकास प्रक्रिया के दौरान आर्थिक रूप से शोषित और हाशिए पर होने नाते धमकी दी जा रही थी। उनका क़सूर सिर्फ़ इतना था कि उन्होंने अपनी चिंताओं को स्वर दिया और पवन ऊर्जा के परोकरों के साथ सम्मानजनक परामर्श गतिविधियों में शामिल होने की माँग की।
हाओ लिखते हैं कि “नवीकरणीय ऊर्जा मायने रखती है, लेकिन उससे अधिक यह मायने रखता है कि इसे कैसे अस्तित्व में लाया जाता है और किस प्रकार के परामर्श और सहयोग का उपयोग किया जाता है।” मरीना रेनोवेबल्स परियोजना पर अंततः 2018 में रोक लगा दी गई। इसका एक प्रमुख कारण मूल निवासियों के अधिकारों, पूर्व एवं सूचित सहमति के अधिकार सहित, पर विचार करने में विफलता थी।
अक्षय ऊर्जा परियोजनाएं मूल निवासियों की सुरक्षा, भलाई और आत्मनिर्णय (यानी सहमति) की रक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में विफल हो सकती हैं। जबकि मेरा काम मूल निवासी के मुद्दों पर केंद्रित है, ऐसे कई अन्य समुदाय और लोग अक्षय ऊर्जा के कारण नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकते हैं। इस बात की पुष्टि दुनिया भर में हर जगह के बढ़ते साहित्य से होती है। उपरोक्त मामले में, वाहाका में कार्बन फ़ुटप्रिंट को कम करने के चक्कर में तेज़ी से बीतते समय को पराजित करने की प्रेरणा ने मूल निवासियों की बावत जिम्मेदारीपूर्ण काम करने के महत्व को धुँधलके में डाल दिया है। मूल निवासियों, मेक्सिको और निजी उद्योगों के बीच वर्तमान संबंध बाद के दो पक्षों द्वारा लंबे समय से जिम्मेदारीपूर्वक व्यवहार करने में विफलता के कारण तनावपूर्ण हैं, जिसमें मूल निवासियों की सुरक्षा और भलाई के लिए सहमति और अवहेलना भी शामिल है। इन तनावपूर्ण रिश्तों को बदलने के लिए काम करने के बजाय, वर्तमान स्थिति को अनदेखा करते हुए पवन ऊर्जा पैरोकारों ने तेजी से काम करने पर ज़ोर दिया, और पीढ़ियों से चले आ रहे भेदभाव को क़ायम रखते हुए अपनी कार्यान्वयन रणनीतियों पर भरोसा जताया।
नातेदारी सबंधित समय
मेलिसा नेल्सन द्वारा प्रस्तुत जलवायु परिवर्तन के नातेदारी–आधारित विवरण के साथ निबंध की शुरुआत हुई। कई स्वदेशी ज्ञान उपहारदाता, कलाकार और विद्वान, नातेदरी संबंधित समय के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को संप्रेषित कर रहे हैं। मैं इस बात पर चर्चा करूंगा कि कैसे नातेदारी के माध्यम से समय बताने से जिम्मेदारी उस तरह से धुँधली नहीं पड़ती, जिस तरह लीनियर समय से पड़ती है। जबकि कई लोगों द्वारा कई क्षेत्रों और जीवन के कई रास्तों में नातेदारी का आह्वान किया गया है, मैं यहां इसका एक विशेष तरीके से उपयोग करूंगा। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, नातेदारी एक समाज के सदस्यों को जिम्मेदारी के ज़रिए साथ जोड़ने वाले संबंधों को संदर्भित करती है। नातेदारी समाज की प्रतिक्रिया को उसके सदस्यों की सुरक्षा, कल्याण और आत्मनिर्णय को प्रभावित करने वाले परिवर्तनों के प्रति सुविधा प्रदान करने के लिए कार्य करते हैं।
नातेदारी को उसके दार्शनिक रूप में समझना जटिल है। यह विश्वास करना ही पर्याप्त नहीं है कि किसी की तो जिम्मेदारी बनती है। हमारी प्रत्येक जिम्मेदारी मुख्य रूप से तब मायने रखती है, जब उसके कुछ गुणों का भी पालन किया जाए। नाते की गुणवत्ता से आशय है कि संबंध की कौन सी विशेषताएं इसे व्यवहार में अधिक या कम अनुपात में प्राप्त करने योग्य बनाती हैं। इन गुणों में पारस्परिकता, सहमति, विश्वास, पारदर्शिता, गोपनीयता, इत्यादि शामिल हैं। यहाँ यह फिर से स्पष्ट करना महत्वपूर्ण है कि नातेदारी का मतलब करीबी पारिवारिक संबंधों या साझा जैविक वंश से नहीं है। बल्कि, यह एक ऐसी श्रेणी है जो समाज के भीतर किसी को भी एक साथ जोड़ सकती है और यहां तक कि व्यापक समाजों में राजनयिक संबंध तक भी विस्तारित की जा सकती है।
एक बुनियादी मिसाल पर ग़ौर करें। एक संरक्षित/संरक्षक (मेंटीज़/मेंटर) संबंध के लिए पारिवारिक या जैविक संबंध की आवश्यकता नहीं होती है। जब रिश्तों में पारस्परिकता, सहमति, विश्वास, पारदर्शिता और गोपनीयता के उच्च स्तर आते हैं, तो संरक्षित और संरक्षक साथ मिलकर बेहतर काम करते हैं। उपरोक्त गुणों को पोषित करने और विकसित होने में समय लगता है, और सभी नातेदारों को शामिल करता है। संरक्षक को अपने भरोसेमंद होने और संरक्षित के आत्मनिर्णय (सहमति) का सम्मान का प्रमाण देना चाहिए। इसी तरह संरक्षित को भी पारस्परिकता व्यक्त करते हुए संरक्षक के समय का सम्मान करना चाहिए। पारदर्शिता और गोपनीयता के गुणों के बारे में साझा समझ होनी चाहिए।
यदि जिम्मेदारी के गुणों में इज़ाफ़ा होता है, तो संरक्षित और संरक्षक अपने रिश्ते के दायरों के (जैसे पेशेवर, सामाजिक, धार्मिक, आदि) अंदर रहते हुए अधिक कठिन चुनौतियों का मिलजुलकर सामना कर सकते हैं। बदले में, संरक्षित एक समय बाद स्वयं संरक्षक बन जाते हैं और नातेदारी के गुणों को, अन्यों के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाकर आगे बढ़ाते हैं। या संरक्षित अन्य साथियों को संरक्षक सुझाकर समर्थन के दायरे का विस्तार कर सकते हैं। इस तरह एकल संरक्षित/संरक्षक संबंध के रूप में शुरू हुआ संबंध धीरे–धीरे एक सहायक नेटवर्क का रूप ले लेता है और ना केवल समय के साथ उन चुनौतियों का सामना करने की बेहतर क्षमता हासिल करता है, बल्कि संरक्षित की सुरक्षा, कल्याण और आत्मनिर्णय को भी प्रभावित करता है। लेकिन ऐसे संदर्भों में, जहाँ संरक्षक और संरक्षित के बीच संबंधों को पदानुक्रम और उत्पीड़न द्वारा नियंत्रित किया जाता है, वहाँ दोनों पक्षों की प्रतिबद्धता के बावजूद बहुत जल्द ही सहमति, पारस्परिकता, या विश्वास जैसे गुणों के लिए चुनौतीपूर्ण स्थित सामने आने की संभावना बनी बराबर रहती है।
कल्पना कीजिए कि यदि हम उन सभी रिश्तों पर विचार करें, जो हमारे अन्य लोगों के साथ हैं, जिनमें पारस्परिक जिम्मेदारियां शामिल हैं, या, होनी चाहिए। आगे कल्पना कीजिए कि हम नातेदारी की अवधि और उनकी हरकत के माध्यम से समय बताना शुरू कर दें। जब नातेदारी के माध्यम से समय का अनुभव होता है, तो तेज़ी से बीतता समय थम जाता है। अवधि को, वर्तमान नातेदारी के अनुपात, उसके इतिहास और भविष्य की संभावनाओं के अनुसार समझा जाता है। अमुक कार्यस्थल में किसी को प्रगति करने में कितना समय लगेगा? ऐसे कार्यस्थलों जहाँ पारस्परिकता, विश्वास, सहमति, और गोपनीयता के लिए जाना जाता हों, वहाँ किसी के लिए भी प्रगति करना सहज महसूस होगा। या, जब मेंटरशिप में जिम्मेदारी के गुणों की कमी होती है, तो प्रगति की सीढ़ी चढ़ना दूर क़ी कौड़ी जान पड़ती है। कभी–कभी नातेदारी इतनी अधिक मौजूद होती है कि कार्यस्थल में पारस्परिकता या सहमति की संस्कृति होने का एहसास होता है, भले ही किसी को यह याद न रहे कि इस तरह के रिश्ते का विकास किस वर्ष शुरू हुआ था। ऐसी टिकाऊ संस्कृतियों में उच्च स्तर की परस्पर निर्भरता होती है।
लेकिन ऐसे कार्यस्थलों, जहाँ मेंटरशिप की जिम्मेदारी काफी हद तक नदारद है, किसी को परिवर्तन की प्रक्रिया पूरी दुनिया का तहसनहस होना महसूस करवा सकता है। समर्थन और नेक इरादों के साथ मार्गदर्शन के बिना कर्मियों को प्रदर्शन अपेक्षाओं, नई नीतियों, सॉफ्टवेयर सिस्टम को अपनाने की होड़ और आपसी द्वन्द द्वारा कुचला जा सकता है। इस संदर्भ में खराब प्रदर्शन की समीक्षा समय के साथ अनुभव की जाती है। यह एक झटके की तरह महसूस हो सकता है, जो एक कामगार की भावना को उकसाता है कि उसके पास किसी की पारस्परिकता नहीं है, कि उसके दृष्टिकोण (सहमति) के कोई मायने नहीं हैं, और यह कि प्रबंधन उसके सर्वोत्तम हित को दिल (विश्वास) से नहीं ले रहा है। यह किसी को भी अपनी स्थिति में सुधार लाने या किसी अन्य जगह पर स्थानांतरित होने के लिए, कठोर उपाय करने को प्रेरित कर सकता है। परस्पर निर्भरता का कोई अस्तित्व नहीं है। इसकी तुलना अब ऐसे कार्यस्थलों से करें जहाँ परस्पर निर्भरता और पेशेवर सीमाओं का सम्मान होता हो; जहाँ कामगारों को यह जानकर सुरक्षा का बोध होता हो कि उनके सलाहकार पारस्परिकता, सहमति और विश्वास के प्रति प्रतिबद्ध हैं, और इसलिए मार्गदर्शन और सुनने के प्रति भी और तमाम बाधाओं और चुनौतियों के बावजूद आगे बढ़ते रहेंगे।
जब नातेदारी के माध्यम से समय बताया जाता है, तो हमें जलवायु परिवर्तन का एक अलग विवरण मिलता है। मैं कार्यस्थलों में मेंटरशिप के उदाहरण से जलवायु परिवर्तन की ओर वापस लौटता हूँ। विविध देशज विद्वानों और लेखकों ने अंग्रेजी में जलवायु परिवर्तन के नातेदारी–आधारित आख्यानों का वर्णन किया है। जबकि मेरे यहाँ नातेदारी के इस्तेमाल को कभी–कभी संबंधित शब्दावली के साथ और अपने विशिष्ट उपयोगों में भिन्न होने के बावजूद प्राथमिकता दी जाती है, जैसे वंशावली या कबीले। यह निबंध विभिन्न देशज परंपराओं की वास्तविक तुलनाओं और विरोधाभासों के लिए आवश्यक विस्तार के स्तर को नहीं छू सकता। लेकिन मैं यहाँ जिन उदाहरणों को साझा करना चाहता हूँ, उनमें समय को नातेदारी के माध्यम से बताया गया है, जो जिम्मेदारी के भाव को जलवायु परिवर्तन से गूँथते हैं।
एंड्रिया टंक्स माओरी पारंपरिक दर्शन में जलवायु परिवर्तन की प्राचीन उत्पत्ति के बारे में लिखती हैं: माओरी उत्पत्ति की कहानी का रूपक पर्यावरण की तांगाटा वेनुआ धारणा को जन्म देता है, जिसमें जलवायु की उनकी अवधारणाएं भी शामिल हैं। यह ते कोरे से शुरू होता है, जो एकमात्र पैतृक आध्यात्मिक स्रोत है जिसने ते पो को जन्म दिया, और, रात और अंधेरे ब्रह्मांड के भीतर पृथ्वी (पापतुआनुकु) और आकाश (रंगिनुई) का गठन किया गया। ते कोरे से वाकापापा (वंशावली) एक विशाल जाले (ग्रेट वेब) की तरह सामने आती है, रंगिनुई और पापतुआनुकु के वंशज प्राकृतिक दुनिया के निर्माण और नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह वेब ब्रह्मांड में सभी चीजों की अंतर्निहित आध्यात्मिकता का निर्माण करता है और उनके परस्पर संबंध का आधार है। वेब के सभी हिस्सों के बीच वानंगटंगा या संबंधितता पुरकाउ में परिलक्षित होती है, जहाँ चल रहे नाते, देखरेख और जिम्मेदारी पर्यावरण पर शासन करने के आरोप में विभिन्न संस्थाओं के कार्यों को चिह्नित करते हैं। इस वेबबेड संबंध की जटिलता और नाजुकता में यह धारणा शामिल है कि मानवीय क्रियाएं जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं। आध्यात्मिक संस्थाएं माओरी रूपक रूप से पहचान करती हैं कि वे किस जलवायु परिस्थितियों में रहते हैं।
इस पुनर्गणना में टंक्स के लिए जलवायु प्रणाली को पारस्परिक जिम्मेदारी की वंशावली वेब के रूप में माना जाता है। जलवायु प्रणाली प्राचीन, चिरस्थायी संबंधों पर आधारित है। तत्पश्चात अपने निबंध में टंक्स ने जलवायु प्रणाली में मानव हस्तक्षेपों का वर्णन किया है जब वे अपनी जिम्मेदारियों का उल्लंघन करते हैं, जैसे कि प्रदूषण के अत्यधिक रूपों के माध्यम से, जिसका वृद्धि और तीव्रता के रूप में अनुभव किया जाता है। जिम्मेदारियों के उल्लंघन को “जलवायु परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार संस्थाओं” के “क्रोध” के रूप में भी अनुभव किया जा सकता है।
लैरी मर्क्युलीफ़ आर्कटिक इलाक़े में, देशज ज्ञान और जलवायु परिवर्तन पर रिपोर्ट में लिखते हैं: एक पारिस्थितिकी तंत्र के सभी हिस्सों में एक चेतना विद्यमान है और इस चेतना के लिए व्यक्ति और समुदाय को सम्मान और पारस्परिकता के साथ कार्य करने की आवश्यकता होती है। यदि शिकारी या अन्य कोई, उस जीव का उचित सम्मान नहीं करते जो उसे भोजन देता है, तो उसकी आत्मा भौतिक रूप लेने के लिए वापिस नहीं आती। इसका अर्थ है एक हिरन, एक भालू, एक सील या एक मछली का हमेशा के लिए विलुप्त हो जाना। फिर भी जहाजों के वाणिज्यिक बेड़े द्वारा बड़े पैमाने पर पकड़ी गई लाखों मछलियों, समुद्री स्तनधारियों, ऑक्टोपी और अन्य समुद्री जीवों पर लागू होता है, साथ ही लाखों और समुद्री जीव की मृत्यु पर, जिन्हें तथाकथित ‘बाय–कैच‘ के रूप में मारा जाता है। आर्कटिक के मूल निवासियों को यह बात आश्चर्य में नहीं डालती कि मछली और समुद्री स्तनधारियों की दुर्घटनाग्रस्त आबादी के साथ–साथ पारिस्थितिकी तंत्र में भी बदलाव हो रहे हैं।
मर्क्युलीफ़ चेतना के माध्यम से नातेदारी का वर्णन करते हैं (मिसाल के तौर पर आत्मनिर्णय, सहमति/असहमति) और पारस्परिकता, जो “श्रद्धा और पारस्परिकता” (“स्वयं को देना“) जैसी जिम्मेदारियों को बाँटती है। उदाहरणस्वरूप समय की अवधि जानवरों की आबादी की वापसी के संदर्भ में, नातेदारी गुणों के अनुपात के कार्य के रूप में अनुभव की जाती है। मर्क्युलीफ़ बताते हैं कि कैसे मूल निवासी नातेदारी के अनादर के बड़े प्रभावों को तीव्रता और वृद्धि के रूप में समझते हैं।
समैंथा चिशोल्म हैटफ़ील्ड ने जलवायु परिवर्तन पर विविध सहयोगियों के साथ काम किया है, उन्होंने उत्तरी अमेरिका के प्रशांत उत्तर–पश्चिमी क्षेत्र में सिलेट्ज़ और अन्य जनजातियों में ज्ञान रखने वालों के स्वरों का विशेषाधिकार प्राप्त किया है। वह लिखती हैं कि “हमारे अध्ययन में पाया गया कि समय की जनजातीय समझ, प्राकृतिक दुनिया में देखे गए संकेतों और पैटर्न से परिभाषित होती है। इस प्रकार, समय पश्चिमी लीनियर समय प्रणाली के बजाय 3D निर्माण पर निर्भर, संचालित और आधारित होता है।” चिशोल्म हैटफील्ड और सह–लेखकों के लिए संकेतकों की प्रणालियों द्वारा समय का अनुभव किया जाता हैं: “मौसमी पैटर्न को पौधे, पशु, कीट और मानव अनुभव के बीच ‘कनेक्टिविटी’ और एकीकरण की जटिल प्रणाली के रूप में देखा जाता है। मानव व्यवहार के इन संकेतों में मौसम की घटनाएं शामिल हैं, जैसे एक निश्चित पहाड़ पर बर्फ की पहली उपस्थिति, वानस्पतिक संकेतक, जैसे कि जब जामुन निकलते हैं, और जानवरों के व्यवहार जैसे चींटी की एक निश्चित प्रजाति का उद्भव।”
एक अध्ययन में बुज़ुर्गों में से एक, ऑस्कर हैटफ़ील्ड ने निम्नलिखित उदाहरण साझा किया:
…वसंत में, कारपेंटर चींटियां, बड़ी काली कारपेंटर चींटियां, और [ईल शिकारी] तब तक ईल माछ का शिकार नहीं करतीं जब तक कि वे कारपेंटर चींटियों को नहीं देख लेतीं। वे मेटिंग (मिलन) के लिए बाहर आती हैं, पंख आने पर उड़ जाती हैं और नई बस्तियाँ शुरू करती हैं और मौसम अनुकूल होने पर चिह्नित सामान को एकत्रित करती हैं… वे अन्य चीजों को भी इसी तरह चिह्नित करती हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि हमारा मौसम इतना बदल गया है कि कुछ भी चिह्नित नहीं किया जा सकता; ऐसा करने का कोई तरीका नहीं है। [ऑस्कर हैटफाइड (सीटीएसआई बुज़ुर्ग)]
शोध पत्र इसकी व्याख्या करता है “उपरोक्त उदाहरण में, कारपेंटर चींटियों का “ईल्स” (पैसिफिक लैम्प्रे) या जल स्तर के ‘स्पॉनिंग’ (वंश वृद्धि) समय से कोई सीधा जैविक संबंध नहीं है।” लेकिन मुद्दा यह नहीं है।
जब एक बदलती जलवायु, फेनोलॉजिकल (स्वरविज्ञान संबंधी) घटनाओं के बीच लंबे समय से स्थापित संघों को बदल देती है, जैसा कि उपरोक्त उदाहरणों में बताया है, नतीजा केवल एक असुविधा या जानकारी का एक सेट नहीं है; बल्कि, वे मौलिक विश्वास को चुनौती देते हैं कि प्राकृतिक दुनिया के तत्व कैसे आपस में गुँथे हुए हैं, साथ ही जब पारंपरिक पैटर्न घटित होते हैं और व्यवहार में आते हैं। प्रजातियों के बीच के बंधन, जैसे कि कारपेंटर चींटियों और ईल के बीच, सामन बेरी और ब्लू बैक के बीच, ब्रह्मांड के मौलिक क्रम का प्रतिनिधित्व करता है; जब ये बंधन भंग हो जाते हैं तो व्यवस्था का संतुलन बिगड़ने लगता है जिसके फलस्वरूप कई साक्षात्कारदाताओं ने भ्रम, निराशा और चिंता व्यक्त की, जैसा कि हैटफील्ड की टिप्पणी के अंतिम भाग बताया गया है। फिर से, चिशोल्म हैटफील्ड नातेदारी के समय की बात करते हैं, जहाँ जिम्मेदारी में बदलाव को वृद्धि और गहनता के रूप में अनुभव किया जा सकता है।
पर्यावरण परिवर्तन के ज्ञान के इन बहीखातों में, चाहे टंक्स, मर्क्युलीफ़ या चिशोल्म हैटफ़ीड के काम में, जो महत्वपूर्ण है वह संकेतक और घटना के बीच कुछ भौतिक कारण संबंध नहीं है। मतलब, यह महत्वपूर्ण नहीं है कि लीनियर समय के भीतर कोई संबंध हो। बल्कि, संकेतक नातेदारी नेटवर्क को जुटाने का काम करते हैं। कटाई और एकत्रीकरण प्रमुख सामाजिक कार्यक्रम हैं, जिनमें परिजन संबंधों की जटिल भागीदारी शामिल है। जब ये प्रतिभागी परस्पर निर्भर होते हैं, तो प्रतिभागी एक–दूसरे की सुरक्षा, भलाई और आत्मनिर्णय का समर्थन करते हैं। वे एक साथ बदलने के लिए उत्तरदायी हैं।
जैसा कि चिशोल्म हैटफील्ड लिखते हैं, साझेदारी ना होने के सबूत आने पर लोगों को एक साथ आने और यह निर्धारित करने की आवश्यकता है कि उनके “भ्रम, निराशा और चिंता” के कारण क्या रहा है। यानि संकेतकों में परिवर्तन लोगों के लिए अपनी जिम्मेदारियों पर फिर से विचार करने का एक संदर्भ बनाते हैं ताकि वे समझ सकें कि वे एक समन्वित तरीक़े से जवाबदेही को पुनर्जीवित कर सकते हैं। इस तरह का दर्शन इस बात पर केंद्रित है कि व्यवधान आने पर नातेदारी को कैसे बनाए रखा जाए और कैसे समायोजित किया जाए।
अंतिम विचार: नातेदारी और ज़िम्मेदारी
नातेदारी की समय की धारणाओं के अक्षय ऊर्जा के लिए लापरवाह प्रस्तावों से जुड़े होने की संभावना नहीं है, जो जिम्मेदारी की अनदेखी करते हैं, क्योंकि वे मामलों की वर्तमान स्थिति को हलके में लेते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि, नातेदारी के माध्यम से समय का अनुमान लगाने से मरीना रेनोवेबल्स परियोजना संबंधी सहमति की समस्या उत्पन्न नहीं होगी ना अन्य मामलों में पारस्परिकता, विश्वास, पारदर्शिता और गोपनीयता के मुद्दे। नातेदारी के समय में अचानक और वृद्धि की भावनाएँ शामिल होती हैं, लेकिन उसे लीनियर समय में ख़तरे और तात्कालिकता की तरह नहीं लिया जाता है। निष्कर्ष में, पर्यावरण मानविकी (एनवायरमेंटल ह्यूमेनिटीज़) के संबंध में मेरे आशय पर विचार करें।
कल्पना कीजिए, जैसा कि पिछले खंड में चर्चा की गई है, नातेदारी के माध्यम से समय बताना। जलवायु प्रणाली में नातेदारी के साथ–साथ विभिन्न तनाव शामिल हैं, जो उसे बाधित कर संकट की स्थिति पैदा करते हैं। नातेदारी साझा जिम्मेदारियों के माध्यम से परस्पर निर्भरता को प्रोत्साहित करती है। जिम्मेदारियाँ सबसे अच्छी तरह से तब काम करती हैं जब उनमें विश्वास, सहमति और पारस्परिकता सहित अन्य गुण होते हैं। जब जलवायु परिवर्तन से समाज के सदस्यों (मानव और अन्य) की सुरक्षा, भलाई और आत्मनिर्णय को खतरा होता है, अत: यह जानने के लिए कि व्यवधान के इस मुकाम तक पहुंचने के लिए नातेदारी के रिश्ते कैसे प्रभावित हुए, इतिहास की तह तक जाने की जरूरत है। इतिहास को नातेदारी में बदलाव के जरिए बताया जा सकता है।
औद्योगिक अर्थव्यवस्थाएं पूंजीवादी, उपनिवेशवादी और पितृसत्तात्मक प्रथाओं से जुड़ी रही हैं, जिन्होंने मूल निवासियों और अनेकों समुदायों, लोगों और देशों को प्रभावित किया है। मूल निवासियों के संबंध में अब अमरीका, मैक्सिको और कनाडा जैसे प्रमुख राष्ट्रों ने भूमि पर क़ब्ज़े, बेदख्ली, पर्यावरणीय गिरावट, लिंग और यौन हिंसा, और देशज सरकारों, संस्कृतियों और समाजों को हाशिए पर धकेलने का काम किया है। नागरिकों, निगमों, संगठनों, या सरकारों के कृत्यों के माध्यम से प्रमुख राष्ट्रों ने समय के साथ एक ऐसी स्थिति स्थापित की, जिसमें नातेदारी के गुण अनुपस्थित हैं — सहमति से पारस्परिकता तक।जबकि पीढ़ियों से नातेदारी में बदलाव का विविध मूल निवासियों का अपना इतिहास रहा है, पिछले 200 से 300 वर्षों के वर्चस्व की हालिया लहर में नातेदारी में व्यापक अवरोध उत्पन्न हुए हैं। इन अवरोधों ने जलवायु प्रणाली से जुड़ी साझा जिम्मेदारियों को भी प्रभावित किया है। मूल निवासियों को सहमति के लिए जिस सम्मान की कमी ने अपनी भूमि से बेदखल किया और दूषित ऊर्जा के लिए रास्ता बनाने का काम किया, उसी कमी ने जलवायु प्रणाली के जीवों और संस्थाओं को वातावरण में बढ़ती ग्रीनहाउस गैसों को सोखने वाली सांद्रता को भी अवशोषित किया, जो पारिस्थितिक तनावों में जाकर तापमान बढ़ाता है और एक ख़ास अर्थ में पारिस्थितिक तंत्र को बदलता है।
इस विश्लेषण में, मेरे और मेरे परिचितों के लिए नातेदारी में काफी बदलाव आने की वजह से परस्पर निर्भरता का अनुपात बहुत कम पाया जाता है। जैसे–जैसे नातेदारी पर आधारित परस्पर निर्भरता में गिरावट आती है, प्रतिक्रिया प्राप्त करना कठिन हो जाता है और जलवायु संबंधी अवरोधों को अचानक और बढ़ते हुए अनुभव किया जा सकता है। समन्वित कार्रवाई के लिए हम विश्वसनीय भागीदारों के रूप में किसके पास जा सकते हैं? मैं समझ सकता हूँ कि कैसे जलवायु परिवर्तन से निबटने वाले अक्षय ऊर्जा जैसे नए समाधान उन संदर्भों में लागू किए जाते हैं जहाँ विविध लोगों, पशुओं, पौधों और पारिस्थितिक तंत्र को उनकी सुरक्षा, संरक्षण, कल्याण, और आत्मनिर्णय के संदर्भ में नातेदारी मौजूद नहीं है ताकि उनके कल्याण और आत्मनिर्णय को सुनिश्चित किया जा सके।
नातेदारी का समय तब ख़तरनाक और तात्कालिकता का सामना कर सकता है। लेकिन नातेदारी का समय हमें यह समझने पर बाध्य करता है कि वह खतरे में हैं और कि हमें इसे स्थापित करने या सुधारने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। अन्यथा हमारे पास प्रतिक्रिया के लिए आवश्यक परस्पर निर्भरता का समय नहीं होगा, जो नुकसान और हिंसा को रोकता है। नातेदारी के समय के माध्यम से बताए जाने पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में अचानक वृद्धि कोई टिकटिक करती घड़ी का नतीजा नहीं है। बल्कि, ये एहसास यह जानने से पैदा होता हैं कि नातेदारी साझा जिम्मेदारियों का आधार हैं। हमें अपनी समझ में जलवायु और नातेदारी प्रणालियों को अलग–अलग करने की आवश्यकता नहीं है।इसलिए — नातेदारी के समय में — जलवायु परिवर्तन समाधान जैसी कोई चीज नहीं है, जो पहले तकनीकी रूप से निर्धारित करती है कि कार्बन फ़ुटप्रिंट को कैसे कम किया जाए और फिर इस पर विचार किया जाए कि क्या इसे सहमति, पारस्परिक रूप से या विश्वास के उच्च मानकों के साथ लागू किया जा सकता है। ऐसी परियोजनाएं लीनियर समय में फंस जाती हैं जैसे स्पीड शतरंज में, जहाँ वे टिकटिक करती घड़ी को मात देने के लिए ली गई रणनीतियों पर भरोसा कर रहे होते हैं। बदक़िस्मती से, आज प्रमुख राष्ट्रों की स्वीकृत रणनीतियाँ और स्थितियाँ ठीक ऐसी हैं जिन्हें मूल निवासियों और कई अन्य लोगों के साथ नातेदारी को कम करने से अलग नहीं किया जा सकता है। नातेदारी का समय जलवायु परिवर्तन को कम करने के बारे में कम अडिग नहीं है, लेकिन दृढ़ता का उद्देश्य साझा जिम्मेदारियों की स्थापना और मरम्मत के माध्यम से बेहतर परिस्थितियों का निर्माण करना और परस्पर निर्भरता लाना है, जो कार्बन फ़ुटप्रिंट को कम करने और हर किसी की सुरक्षा, कल्याण और आत्मनिर्णय का समर्थन करता है।
– काईल वाइट, यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन
KYLE WHYTE
Kyle Whyte is George Willis Pack Professor of Environment and Sustainability at the University of Michigan, and is a scholar of environmental justice, specializing in moral and political issues concerning climate policy and Indigenous peoples. Dr. Whyte currently serves on the White House Environmental Justice Advisory Council. He is an enrolled member of the Citizen Potawatomi Nation. For more about him, please see his page at the University of Michigan School for Environment and Sustainability.
RAJENDER NEGI (Translator)
Rajender Negi has been an activist, journalist, writer, editor, translator and researcher. He worked as correspondent with Japanese newspaper, Yomiuri Shimbun, for several years. He then joined OneWorld South Asia, an international NGO working in the field of ICTs, as its deputy web editor. His last job was with the National Geographic Channel, where he headed the versioning department. Currently, he is at large, primarily doing translations and editing.